सिरप में चीनी का उपयोग किया जाता है, जो शरीर के लिए हानिकारक है । जब की इस सिरप में प्राकृतिक खड़ी शक्कर का उपयोग क़िया गया है, जिसका कोई हानिकारक प्रभाव ना होने से निर्भयता से ली जा सकती है ।
शरीर के अन्य अवयवों की तरह त्वचा का भी विशेष महत्त्व है । आयुर्वेद में इसे ज्ञानेंद्रिय के अंतर्गत बताते हुए स्पर्श का अधिष्ठान बताया है । त्वचा हमारे शरीर के विविध अंग-प्रत्यंगों की सुरक्षा करती है । ‘शरीरे षट् त्वच:’ श्लोक द्वारा महर्षि चरकने त्वचा परत की संख्या ६ बतायी है, जो उत्तरोत्तर परत की तरह स्थित होती है । त्वचा की प्रत्येक परत में भिन्न-भिन्न चर्मरोगों की उत्त्पति होती है, जिसका विस्तृत विवरण आयुर्वेद के विविध ग्रंथों में बताई गई है । त्वचा का पोषण लसिका और रक्त के द्वारा होता है, इसलिए रक्त दुषित होने के कारण त्वचा पर दुष्प्रभाव होता है और शरीर में विभिन्न चर्मरोगों की उत्त्पति होती है । अत: सभी चर्मरोगों को दूर करने के लिए रक्त का शोधन करना अत्यंत आवश्यक है । पूज्य गुरुजी के वर्षों के शोध-संशोधन के बाद यह ‘ चर्म रोग हर सिरप ’ बनाया गया है, और वाराणसी में पूज्य गुरुजी के चिकित्सालय में अनेक रोगियों को इसका सेवन कराने पर बहुत लाभदायी सिद्ध हुआ है ।
Skin is also very important like rest of the organs of the body. Ayurveda classifies it as a ‘gyaynendriya’ sensory organ and the place for experience touch. Skin protects various body parts we have. ‘शरीरे षट् त्वच:’ from this shloka, maharishi charak has described the skin to have 6 types or layers, which are placed one after the other. Skin is nourished by lymph and blood, that is why if the blood gets impure then it has bad effect on skin and it can cause various skin diseases. That is why it is very important to purify blood to cure skin diseases. Pujya Guruji researched for years and then came up with the method of this ‘charm rog har syrup’. It has proved to be very beneficial for patients who used to visit Guruji in his clinic in Varanasi.
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